वृद्धावस्था - लेखनी कविता -02-Mar-2022
आज की इस स्वार्थी दुनिया में
किसे कहूँ अपना, किसे पराया
अहंकार मानव दिलों में छाया
रिश्तों पर छायी धन की माया।
जिस अनाथ को था बेटा बनाया
उसकी खुशी में सारा जग समाया
बड़ा हुआ तो ऐसी ठोकर लगाया
पा सफलता निर्मम रूप दिखाया।
जिस वृद्धाश्रम को था कभी बनाया
पीड़ित लोगों का मैंने बीड़ा उठाया
आज बेटे ने मुझे सर का बोझ बता
दे धक्का आश्रम का रास्ता दिखाया।
आहत मन हुआ था बड़ा विचलित
दुनिया का दस्तूर ये समझ न पाया
सोचे मन क्यूँ मैंने एक अनाथ को
अपने कलेजे का है टुकड़ा बनाया।
रही न अब तुम मेरे किसी काम की
काम न धाम, दुश्मन बनी अनाज की
कुछ ऐसे तानों को दिन-रात सुनाया
वृद्धावस्था का बेटे ने मज़ाक बनाया।
बोला घर में जगह पड़ने लगी है कम
जाने कब निकलेगा बुढ़िया का दम
सुनकर बेटे के ये अति निर्मम बोल
वृद्धावस्था में रिश्तों की खुली पोल।
चल दी छोड़कर अपना घर-आँगन
बेटे की चिंता से क्यूँ है व्याकुल मन
जिसे माना अपने बुढ़ापे का सहारा
आज उसी ने क्यूँ बनाया बेसहारा।
व्यथित मन से चली वृद्धाश्रम की ओर
मन में भावों का तूफ़ान मचाता शोर
कैसे अब अपना जीवन बिताऊँगी
दुनिया को कैसे मुख दिखलाऊँगी।
समझी नहीं क्यों वृद्धावस्था होती बुरी
इस दौर में रिश्तों पर क्यों चलती छुरी
ज़िल्लत से तो अच्छा प्रभु प्राण ले लो
जीने की ताकत दो या शरण में ले लो।
वृद्धाश्रम में जाकर भूली मैं सब दर्द
मेरे जैसे अनेक वहाँ बने मेरे हमदर्द
न समझा कौन अपना, कौन पराया
वहाँ रह इतना सारा प्यार था पाया ।
विधाता तुम ये कैसी लीला हो रचाते
पहले माया -मोह से हमें बड़ा लुभाते
जब अपने अपनों को ठोकर लगाते
क्यूँ उस पल पराए उन्हें हैं अपनाते।
मानव न जाने क्यों हो गया है मगरूर
बड़े-बुजुर्गों को वृद्धावस्था में करे दूर
पाएगा तभी वह कुविचारों से आज़ादी
जब घरों में सम्मान पाएँगी नानी-दादी।
डॉ. अर्पिता अग्रवाल
नोएडा, उत्तरप्रदेश
Gunjan Kamal
09-Mar-2022 12:59 AM
सच्चाई बयां करती हुई रचना
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Dr. Arpita Agrawal
09-Mar-2022 08:24 AM
शुक्रिया गुंजन जी ❤
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Nand Gopal Goyal
03-Mar-2022 05:42 PM
Nice
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Dr. Arpita Agrawal
09-Mar-2022 08:24 AM
Thank you
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Seema Priyadarshini sahay
03-Mar-2022 04:55 PM
बहुत ही खूबसूरत
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Dr. Arpita Agrawal
09-Mar-2022 08:24 AM
शुक्रिया सीमा जी
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